~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ना जाने ज़िन्दगी कहा ले चली है, इसके आगे कहा किसी की चली है। दोराहो, तिराहों, और चौराहों म...
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ना जाने ज़िन्दगी कहा ले चली है,
इसके आगे कहा किसी की चली है।
दोराहो, तिराहों, और चौराहों में फस सी गई है ज़िन्दगी,
अपनी ही राहो में ले चली है ज़िन्दगी।
भटकता सा राहगीर रह गया हूं मै,
राहों की मंजिलों में फस गया हूं मै।
ना जाने ज़िन्दगी कहा ले चली है,
इसके आगे कहा किसी की चली है।।
असमंजस में पड़ जाती है ज़िन्दगी,
कहा जाना है भूल जाती है ज़िन्दगी।
यूं तो लाखो लोग मिलते है राह पर
राहगीरों की तरह,
कुछ को याद रखती है कुछ को
भुला देती है ज़िन्दगी।
ना जाने ज़िन्दगी कहा ले चली है,
इसके आगे कहा किसी की चली है।।
ये तो ज़िन्दगी है साहिब इसके आगे कहा
चली है किसी की,
राहे तो बहुत है मंजिलों तक जाने के,
मगर कहा ले जाएगी ये मर्जी है ज़िन्दगी की।
ज़िन्दगी की राहों में कुछ अनजाने से लोग
अपने हो जाया करते है,
और कुछ अपने लोग अनजाने से।
ना जाने ज़िन्दगी कहा ले चली है,
इसके आगे कहा किसी की चली है।।
अंत में बस इतना ही कहना हैं -
" ज़िन्दगी की दौड़ में अब ये समझ नहीं आ रहा
की ज़िन्दगी दौड़ा रही है या हम ज़िन्दगी के पीछे
ज़िन्दगी के लिए दौड़ रहे है।।"
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~ वैधविक