तुम खुश तो हो ना ?,कहानी,वैधविक
वैसे तो आलोक और आरोही ने वादा किया था की जिंदगी भर साथ रहेंगे, पर फिर भी वो लोग आज साथ नही है, या यू कहे की साथ होते हुए भी साथ नही है। पर अब इन सब बात से इन दोनो को अलग होने के बाद कोई फर्क भी नहीं पड़ा, दोनो ही जिंदगी में काफी आगे बढ़ चुके है। पर दोनो ने जिंदगी में एक बात एक जैसी सीखी, की कभी कुछ बाते दिल मे हो तो कह देनी चाहिए क्योंकि पता नही बाद में उसे कहने का मौका मिले भी या नहीं.
"सुनो ! तुम्हे वो दिन याद है जब हम लोग पहली बार रेस्टोरेंट में गए थे।" आलोक ने पता नही क्यों पर अचानक ही ये प्रश्न किया था।
"हां ! और वहा हमने डोसा ऑर्डर किया था, उस वक्त तुम कितना शरमाते थे मुझसे बात करते हुए" आरोही ने भी हंसते हुए जवाब दिया। "पर तुम्हे इस वक्त ये सब क्यों याद आ रहा है वो भी ४ साल बाद?" आरोही ने आगे कहा।
"ओह हेलो मैडम, शर्माता नही था मैं, वो बस कम बोलता था उस वक्त, और वो बस ऐसे ही याद आ गया मुझे, पता नही क्यों मुझे लगता ही नहीं है की चार साल हो चुके है मुझे तो एक दो महीने पुरानी बात ही लगती है" आलोक गंभीर हो कर बोल रहा थाा । पर शायद इसका अनुमान आरोही भी नही लगा पाई थी।
"और तुम्हे वो याद है, सिविल लाइंस पर जो कुल्फी थी?"
आरोही ने भी अपनी एक बहुत ही प्यारी याद को याद करते हुए कहा।
"हां उसको कैसे भूल सकते है, उसके चक्कर में तो कई बार पैदल चलकर पैर तुड़वाए है, पर सच बताऊं तो मुझे कुल्फी में इतनी दिलचस्पी नही थी जितना तुम्हारे साथ पैदल चलते हुए बात करने में थी" आलोक ने भी इस बार सच बता ही दिया था की वो कुल्फी सिर्फ आरोही के चक्कर में खाता था।
"तो मतलब तुम्हे कुल्फी पसंद नही थी वहा की, फिर भी दो दो खा जाते थे" इस बार आरोही ने हमेशा की तरह मजाकिया लिहाज से कहा"
"जब तुम मेरे साथ होती थी तो मुझे कुछ और पसंद ही नही होता था" आलोक अब भी सीरियस ही बात कर रहा था।
"यार , क्या हो गया तुम्हे? इतनी रोमांटिक बाते कैसे करने लगे? पहले जब मैं चाहती थी की तुम तारीफ करो तब तो बहुत नखरे करते थे" आरोही ने इस बार भी हंसते हुए ही बोला।
"मुझे लगता था अब तो हम जिंदगी भर साथ है ही तो तारीफ करने के लिए पूरी जिंदगी आगे पड़ी है" आलोक ने कहा।
"बुद्धू , पागल! ऐसा नहीं होता है, एक लड़की हमेशा तारीफ सुनना चाहती है अपने चाहने वाले से" आरोही ऐसे समझाने लगी जैसे कोई मैथ की क्लास हो, "तुम्हे याद है एक बार मैं नई ब्लू ड्रेस पहन कर आई थी, उस दिन मैं बहुत तैयार हो कर सिर्फ तुम्हारे लिए, पर तुमने एक बूंद भी तारीफ नही की" उसने आगे कहा।
" हां याद है पर उस वक्त, मैं किसी और ही सोच में, किसी और ही असमंजस में था अपनी जिंदगी के, तभी कुछ समझ ही नहीं आ रहा था उस वक्त" आलोक अपनी गंभीरता को कायम रखते हुए बोला।
"हां कितने अच्छे थे वो सब दिन" आरोही ने भी अब पहली बार गंभीर होते हुए बोला।
"तुम खुश हो? आलोक ने पूछा
" हम्मम!" और उसने भी हर बार की तरह हम्मम कहते हुए जवाब दिया।
"और तुम?" उसने आगे पूछा।
" मैं तो खुश ही रहता हू हमेशा" इस बार आलोक झूठी हसी जोर से हंसते हुए बोला।
"कितना झूठ बोलने लगे हो तुम अब" आरोही ने कहा।
"तुम आज भी अपना दिमाग ज्यादा चला रही हो, मैं सच में बहुत खुश हू" आलोक ने उसकी बात का जवाब दिया।
"अच्छा तो अब मैं जाती हूं" आरोही ने बहुत ही धीमी और मंद आवाज में कहा।
"अच्छा ठीक है,
ये मुलाकात इनकी कोई पहले से फिक्स नही थी पर पता नही कैसे अचानक मिलना हो गया। और ये अचानक मिलना उनको भूतकाल की गहराइयों में ले डूबा। इतने सालो से दोनो में से किसी ने भी एक दूसरे से मिलने की कोशिश नही की थी, लेकिन दोनो के दिल में अभी भी एक दूसरे के लिए कुछ तो था पर शायद वो नहीं था जो चार साल पहले था।
वो कहते है की ज्यादा समझदार होना भी अच्छा नहीं होता और यहां बेचारे दोनो ही एक जैसे निकले।
लेखक : वैधविक